पंख

poetry

shayri

जिन पंखों को हमने अपना समझा
वो किसी और के निकले
जिनसे थे कभी हम बेहद निख़रे
ऊंचाई को पाकर भी कुछ हासिल ना कर सके
सपने थे कुछ, जो हकीकत ना बन सके
दिल के टुकड़े चार हो गए
चार मेरे यार हो गए
हमपे पैसे चार हो गए
अपनी नैया पार हो गए...

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जिन पंखों को हमने अपना समझा
वो किसी और के निकले
उन्हीं की वजह से आज हम हैं बिख़रे
जिनसे थे कभी हम बेहद निख़रे

...

also in urdu

وہ پنکھ جنہیں ہم اپنا سمجھتے تھے۔ وہ کسی اور کے پاس گیا جن کو ہم کبھی بہت روشن تھے۔ اونچائی حاصل کرنے کے بعد بھی کچھ حاصل نہیں کر سکا۔ خواب کچھ تھے ، جو حقیقت نہیں بن سکے۔ دل چار ہو گیا چار میرے دوست ہیں ہمیں چار مل گئے اپنی کشتی عبور کی۔

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